भारतीय ओलंपिक इतिहास (Indian Olympic History): 1896 से टोक्यो 2020 तक

भारतीय ओलंपिक इतिहास

ओलंपिक खेल लंबे समय से मानव धीरज, जोश, जज्बे और वैश्विक एकता की भावना का उच्चतम उदाहरण रहा है, वाही भारत संस्कृति और विविधता से समृद्ध देश रहा है और भारतीय ओलंपिक इतिहास ने संघर्ष, और जीत के सामयिक उत्साह की कहानियों से भरा हुआ है।

आधुनिक ओलंपिक यात्रा युद्धों की लगातार चुनौतियों और विभिन्न राष्ट्रीय हितों के बीच सभी देशों को खेल के माध्यम से एकता और जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता की खोज मै निकले मानवो एक आम मंच पर लाता हैं फिर चाहे वे दोस्त हों या दुश्मन।

विविधता और खेल विरासत की संस्कृति से समृद्ध देश भारत के लिए, भारतीय ओलंपिक इतिहास एक सदी से अधिक समय के उतार-चढ़ाव का एक सम्मोहक प्रदर्शनी रहा है, 1990 पेरिस ओलंपिक में विनम्र शुरुआत से लेकर टोक्यो 2020 ओलिंपिक में 7 पदकों की उच्चतम पदक तालिका की शानदार जीत तक। भारतीय ओलंपिक इतिहास ने द्रड़ता, असाधारण उपलब्धियों और अपने एथलीटों की स्थायी भावना की कहानियों से बुना है।

Table of Contents

आइए भारतीय ओलंपिक इतिहास की एक यात्रा शुरू करें, प्रत्येक खेलों और देश की खेल पहचान को आकार देने वाली उल्लेखनीय कहानियों की खोज करें।

1896 एथेंस ओलंपिक: 1896 में आधुनिक ओलंपिक का उदगोश प्राचीन शहर एथेंस में हुआ I

क्या आप जानते हैं: प्राचीन ग्रीस में, ओलंपिक ग्रीक देवताओं के राजा ज़ीउस के सम्मान में हर चार साल में आयोजित होने वाला एक भव्य त्योहार था। ये खेल लगभग 776 ईसा पूर्व शुरू हुए और पूरे ग्रीस के शहर-राज्यों के एथलीटों को दौड़, कुश्ती, रथ दौड़ और डिस्कस थ्रोइंग जैसी विभिन्न स्पर्धाओं में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक साथ लाया।

ओलंपिया में आयोजित, ओलंपिक केवल खेल के बारे में नहीं थे, बल्कि यूनानियों के लिए अपनी संस्कृति, कला और एकता का जश्न मनाने का समय भी था। विजेताओं को जैतून की माला से सम्मानित किया गया और प्राचीन ग्रीक समाज में एथलेटिक कौशल और सम्मान के महत्व को प्रदर्शित करते हुए अपने गृहनगर में नायकों के रूप में सम्मानित किया गया। प्राचीन ओलंपिक एक हजार से अधिक वर्षों तक जारी रहा, ग्रीक शहर-राज्यों के बीच सौहार्द को बढ़ावा दिया और खेल और प्रतियोगिता के इतिहास में एक स्थायी विरासत छोड़ी।

1900 पेरिस ओलंपिक: ओलंपिक के साथ भारत की पहली भेट I

भारत ने पहली बार 1900 में ओलंपिक खेलों में भाग लिया, जिसमें एक एंग्लो इंडियन एथलीट नॉर्मन प्रिचर्ड ने एथलेटिक्स में दो पदक जीते – दोनों रजत – और ओलंपिक पदक जीतने वाला पहला एशियाई राष्ट्र बन गया। उनकी उपलब्धियां, हालांकि उनकी यह उपलब्धिया की जानकारी किसी को ना थी, जब तक कि हाल ही में वर्ष 2005 एथलेटिक फ्रेडरेसन के द्वारा जारी किये दस्तावेजो ने उनके अग्रणी कारनामों पर प्रकाश नहीं डाला।

वह 1905 में स्थायी रूप से ब्रिटेन चले गए। जहां से अभिनय में अपना करियर बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए और मूक हॉलीवुड फिल्मों में अभिनय करने वाले पहले ओलंपियन बन गए।

1920 एंटवर्प ओलंपिक: भारत का ओलंपिक का पहला स्वाद

1920 के खेलों से पहले, भारतीय ओलंपिक इतिहास के जनक और बॉम्बे के गवर्नर जॉर्ज लॉयड सर दोराबजी टाटा ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति में प्रतिनिधित्व हासिल करने में मदद की, जिससे वह खेलों में भाग लेने में सक्षम हो गया। ओलंपिक टीम के लिए फंडिंग दोराबजी टाटा (6,000 रुपये + 2,000 रुपये) से आई; भारत सरकार (6,000 रुपये); और बॉम्बे के खेल-दिमाग वाले निवासियों से दान (7,000 रुपये)।

राष्ट्र ने पहली बार 1920 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में एक टीम भेजी और तब से हर ग्रीष्मकालीन खेलों में भाग लिया। भारत की टीम मै तीन एथलीट, दो पहलवान शामिल थे।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

1920 के एंटवर्प ओलंपिक में फ्रीस्टाइल फ्री-वेट कुश्ती में भाग लेने वाले दिनकर राव शिंदे ने अपना कांस्य पदक मैच गंवा दिया था और इस आयोजन में 4 वें स्थान पर रहे, ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय होने का अवसर खो दिया।

1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक: ध्यानचंद का उदय

1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक ने महान ध्यानचंद के नेतृत्व में फील्ड हॉकी में भारत के प्रभुत्व की शुरुआत की। उनके असाधारण कौशल और नेतृत्व ने भारतीय हॉकी टीम को अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया। यह आधुनिक ओलंपिक खेलों में एशिया के किसी भी देश द्वारा जीता गया पहला स्वर्ण पदक था।

1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली यह पुरुषों की फील्ड हॉकी टीम एक लकीर की शुरुआत थी जो 1956 के खेलों तक जारी रही।

1932 लॉस एंजिल्स ओलंपिक: हॉकी मे स्वर्ण विजय

1932 में, लॉस एंजिल्स ओलंपिक में, भारत ने लाल शाह बुखारी की कप्तानी में अपना हॉकी वर्चस्व जारी रखा। टीम ने अपना लगातार दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

द ग्रेट डिप्रेशन के दुश-प्रभावो और 1932 ओलंपिक के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की लागत के कारण, केवल 3 हॉकी टीमों ने ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा मै भाग लेने पहुची: भारत, जापान और मेजबान, यूएसए

अपनी यात्रा का खर्च उठाने के लिए, भारतीय टीम ने लॉस एंजिल्स के लिए समुद्र से अपनी लंबी यात्रा के हर पड़ाव पर प्रदर्शनी मैच खेले। खिलाडियों कि कमी के कारण भारतीय दल ने खेलों के बीच पूरे दल को विभिन्न खेलो मै खिलाया, डिकी (रिचर्ड) कैर ने फील्ड हॉकी और 4 × 100 मीटर ट्रैक स्पर्धाओं दोनों में भाग लिया।

1936 बर्लिन ओलंपिक: लगातार तीसरा स्वर्ण पदक

1936 के बर्लिन ओलंपिक ने हॉकी में भारत के लिए स्वर्ण पदकों की ऐतिहासिक हैट्रिक लगाई। ध्यानचंद की अगुवाई में एक बार फिर भारतीय टीम की अजेय प्रदर्शन और कलात्मक शैली ने न केवल दर्शकों को बल्कि जर्मन चांसलर और अध्यक्ष एडोल्फ हिटलर को भी मंत्रमुग्ध कर दिया।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

भारत के पारंपरिक खेलों को 1936 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के साथ एक प्रदर्शनी के रूप में प्रदर्शित किया गया था। कबड्डी, खो-खो और मल्लखंभ जैसे खेलों का प्रदर्शन किया गया। भारतीय शारीरिक संस्कृति प्रथाओं जैसे लेज़िम और योग का भी प्रदर्शन किया गया।

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा खेलों को आधिकारिक प्रदर्शन खेलों के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी। हालांकि, दल को एडॉल्फ हिटलर द्वारा मानद पदक से सम्मानित किया गया था, जिसके बारे में कहा गया था कि वह प्रदर्शन से प्रभावित थे।

1948 लंदन ओलंपिक: भारतीय स्वतंत्रता और हॉकी मे वर्चस्व

1948 के लंदन ओलंपिक ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की पहली उपस्थिति को चिह्नित किया। किशन लाल की कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने अपना दबदबा जारी रखा, एक और स्वर्ण पदक जीत के साथ अंतरराष्ट्रीय हॉकी में एक पावरहाउस के रूप में अपनी स्थिति की पुष्टि की।

भारत के स्वर्ण पदक की खुशी के बीच, बलबीर सिंह सीनियर की कहानी थी, एक युवा खिलाड़ी जिसकी यात्रा विभाजन की छाया में शुरू हुई थी। उनका संकल्प और कौशल बाद में हॉकी में भारत के स्वर्ण युग को आकार दिया, और तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नामे किये।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

गोल्ड (2018 बॉलीवुड फिल्म), 1948 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत की राष्ट्रीय हॉकी टीम की जीत पर आधारित थी।

1952 हेलसिंकी ओलंपिक: भारतीय हॉकी का स्वर्ण युग

1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारत का हॉकी दबदबा अपने चरम पर पहुंच गया था। केडी सिंह बाबू की कप्तानी में, भारतीय टीम ने लगातार पांचवां स्वर्ण पदक हासिल किया। यह पहली बार था, जब ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में किसी भारतीय ने व्यक्तिगत पदक जीता जब खाशाबा दादासाहेब जाधव ने पुरुषों की फ्रीस्टाइल बैंटमवेट कुश्ती में कांस्य पदक जीता।

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हॉकी में एक और स्वर्ण जीत के खुमार के बीच, एक अनकही कहानी भी थी जब भारत ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में अपनी पहली महिला दल भेजी। भारत की मैरी डिसूजा और नीलिमा घोष ने ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में भाग लिया।

1956 मेलबर्न ओलंपिक: मिल्खा सिंह का पहला ओलिंपिक

भारत की तरफ से मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में 1956 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में 59 प्रतियोगियों, 58 पुरुषों और 1 महिला ने 8 खेलों में 32 कार्यक्रमों में भाग लिया। उनका एकमात्र पदक, एक स्वर्ण, पुरुष हॉकी में आया।

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भारत के सबसे प्रसिद्ध धावक मिल्खा सिंह ने पुरुषों की 200 मीटर स्पर्धा में इस ओलंपिक में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की, लेकिन वह हीट स्टेज से आगे नहीं बढ़ पाए।

1960 रोम ओलंपिक: हॉकी में एक युग का अंत

1960 के रोम ओलंपिक ने भारत की हॉकी गाथा में एक खट्टा-मीठा अध्याय है। जबकि लेस्ली क्लॉडियस की अगुवाई वाली भारतीय टीम पाकिस्तान से 1-0 से हारने के बाद रजत पदक हासिल करने में सफल रही, जो अद्वितीय सफलता और वैश्विक प्रशंसा की विशेषता वाले युग के अंत का संकेत थे।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

मिल्खा सिंह फाइनल से पहले सभी 400 मीटर राउंड में दूसरे स्थान पर रहे, प्रत्येक अवसर पर अपने समय में सुधार किया। फाइनल में वह 45.6 के समय के साथ चौथे स्थान पर रहे, यह एक ऐसा निर्णय था जिसके लिए फोटो-फिनिश की आवश्यकता थी। 1984 के ओलंपिक तक किसी भारतीय ट्रैक एथलीट द्वारा उनकी फिनिशिंग स्थिति को बेहतर नहीं बनाया गया था।

1964 टोक्यो ओलंपिक: हॉकी में एक और स्वर्ण

भारत ने 1964 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया, जिसमें 53 प्रतियोगियों, 52 पुरुषों और 1 महिला ने 8 खेलों में 42 कार्यक्रमों में भाग लिया। भारत फील्ड हॉकी में एक एकल पदक, स्वर्ण जीतने में सक्षम रहा।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

गुरबचन सिंह रंधावा ने दृढ़ता और जुनून की एक कहानी लिखी – चुनौतियों और असफलताओं से भरी एक यात्रा। वह 1964 के टोक्यो खेलों में 110 मीटर बाधा दौड़ में 5 वें स्थान पर रहे और भारत ने ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में अपना पहला पदक जीतने का एक और मौका गंवा दिया।

1968 मेक्सिको ओलंपिक

भारत ने 1968 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में 25 प्रतियोगियों के साथ भाग लिया, भारतीय दल मे सभी पुरुषों थे जिन्होंने 5 खेलों में 11 कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने एक कांस्य पदक जीता।

मजेदार तथ्य: क्या आप जानते हैं कि 1968 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की भारतीय पुरुष हॉकी टीम में 3 खिलाड़ी एक ही नाम के बलबीर सिंह थे।

1972 म्यूनिख ओलंपिक: हॉकी में कांस्य की चमक

भारत ने 1972 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में 41 प्रतियोगियों, 40 पुरुषों और एक महिला के साथ प्रतिस्पर्धा की, 7 खेलों में 27 कार्यक्रमों में भाग लिया। भारत ने पुरुष हॉकी में अपना एकमात्र पदक जीता।

1976 मॉन्ट्रियल ओलंपिक

1928 के बाद यह पहला ओलंपिक था जिसमें भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक पदक नहीं जीता था।

1980 मास्को ओलंपिक: राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, एक ऐतिहासिक जीत

1980 का मास्को ओलंपिक राजनीतिक तनाव और विवाद की पृष्ठभूमि के दौर मे आयोजित हुआ। कई देशों के बहिष्कार के बीच, वासुदेवन भास्करन के नेतृत्व में भारत की हॉकी टीम ने प्रतिष्ठित स्वर्ण पदक हासिल करते हुए एक बार फिर इतिहास में अपना नाम दर्ज किया। इस जीत ने विपरीत परिस्थितियों के बीच खेल उत्कृष्टता के लिए भारत की हमेशा सराहना की जाती है, परन्तु 1980 के बाद से भारत के हॉकी वर्चस्व में गिरावट आई और देश ने तब से हॉकी में एक और ओलंपिक स्वर्ण नहीं जीता है।

क्या आप जानते हैं: 1980 मास्को ओलंपिक के पस्चात भारत ने अपना एक लौता हॉकी का मैडल 41 साल बाद 2021 टोक्यो ओलिंपिक मे जीता I

1984 लॉस एंजिल्स ओलंपिक: पय्योली एक्सप्रेस एपिसोड

भारत ने 1984 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया, भारत ने पदक नहीं जीता, लेकिन खेलों को भारतीय महिला एथलीटों को केंद्र में लाने के लिए याद किया जाता है। पी. टी. उषा 400 मीटर बाधा दौड़ में एक सेकंड के सौवें हिस्से से कांस्य पदक हार गईं।

1996 अटलांटा ओलंपिक: लिएंडर, एकमात्र सितारा

भारत ने 1996 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लिया, पुरुषों की टेनिस स्पर्धा में लिएंडर पेस का कांस्य पदक देश द्वारा जीता गया एकमात्र पदक था।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

1996 के खेलों से 44 साल पहले एक भारतीय ने आखिरी बार ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक जीता था, केडी जाधव ने 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, हेलसिंकी में फ्रीस्टाइल बैंटमवेट कुश्ती के लिए कांस्य अर्जित किया था। यह पदक 1980 के मास्को ओलंपिक में उनकी पुरुष हॉकी टीम के स्वर्ण पदक जीतने के बाद भी भारत का पहला पदक था। जो की आज तक टेनिस मे भारत का एक मात्र ओलिंपिक मैडल है I

2000 सिडनी ओलंपिक: कर्णम ने भारत की उम्मीदों को अपने कंधो पर उठाया

कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 69 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह भारोत्तोलन में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

2004 सिडनी ओलंपिक: भारतीय निशानेबाजों का युग शुरू

भारत के लिए डबल ट्रैप शूटिंग मे रजत पदक विजेता कैप्टन राज्यवर्धन सिंह राठौर थे। वह व्यक्तिगत रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। यह रजत पदक केवल एक पदक से बढकर था राज्यवर्धन सिंह राठौर को देख कर भारत कि युवा पीढ़ी ने आपने वाली कई वैश्विक खेल प्रतियोगिताओं मे शूटिंग न केवल भारत का प्रतिनिद्त्व किया बल्कि कई मैडल जीत कर भारत को शूटिंग मे एक पॉवर हाउस के रूप मै स्थापित किया I

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

कई भारतीय एथलीट पदक की दौड़ बढ़ाने के करीब आए, 2004 के खेलों में चौथे स्थान पर रहे, जिसमें टेनिस पुरुष युगल में महेश भूपति और लिएंडर पेस शामिल थे, जब यह जोड़ी अपना कांस्य पदक मैच हार गई और कुंजारानी देवी भारोत्तोलन महिलाओं के 48 किलोग्राम वर्ग में चौथे स्थान पर रहीं। भारतीय स्टार लंबी कूद सनसनी अंजू जॉर्ज भी राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाने के बाद अपनी पदक स्पर्धा में 5वें स्थान पर रही।

2008 बीजिंग ओलंपिक: भारतीय खेलों में एक नया अध्याय

2008 के बीजिंग ओलंपिक ने भारतीय खेलों में एक ऐतिहासिक क्षण को चिह्नित किया, जिसमें अभिनव बिंद्रा ने पहले भारतीय व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता के रूप में इतिहास रचा। सुशील कुमार ने भारत के लिए कुश्ती पदक जीता और विजेंदर सिंह ने मिडिलवेट मुक्केबाजी वर्ग में कांस्य पदक जीता, भारतीय दल द्वारा इस सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को प्रज्वलित किया, भारत ने पहली बार ओलिंपिक मै 3 मैडल जीते देश भर में ओलंपिक खेलों के लिए एक नयी रूचि देखि गई जिसने एथलीटों की एक नई पीढ़ी को बड़े सपने देखने और उच्च लक्ष्य रखने के लिए प्रेरित किया।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

बिंद्रा की ऐतिहासिक उपलब्धि के बीच, हम ओलंपिक हॉकी के समृद्ध इतिहास को संरक्षित करना भूल गए क्योंकि 1928 के बाद पहली बार, पुरुषों की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम क्वालीफाई करने में विफलता के कारण ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लेने में असमर्थ रही।

2012 लंदन ओलंपिक: भारतीय खेलों में महिलाओं का उदय

2012 के लंदन ओलंपिक ने भारतीय खेलों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर देखा, सुशील कुमार, जिन्हें भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा उद्घाटन समारोह में राष्ट्र के ध्वजवाहक के रूप में चुना गया था, ने अपने ऑफ-मैट दोस्त योगेश्वर दत्त जिन्होंने रेपेचेज राउंड जीतकर कांस्य पदक जीता के साथ पुरुषों की फ्रीस्टाइल कुश्ती में रजत जीतकर एक और , दूसरा ओलिंपिक मैडल अपने नाम किया।

साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में कांस्य पदक जीता, मुक्केबाज मैरी कॉम ने पहली बार महिलाओं की फ्लाईवेट स्पर्धा में कांस्य पदक प्राप्त किया – भारत के ओलंपिक दल में महिला एथलीटों की बढ़ती प्रमुखता का एक वसीयतनामा।

भारतीय निशानेबाजों ने लगातार तीसरे ओलंपिक में अपना पदक जारी रखा जब विजय कुमार ने 25 मीटर रैपिड-फायर पिस्टल स्पर्धा में रजत जीतने के लिए अपने भारतीय सेना प्रशिक्षण का इस्तेमाल किया और अनुभवी निशानेबाज गगन नारंग ने अपने तीसरे ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

2012 के इस ओलंपिक को कुछ विवादों और गलत फैसलों के लिए भी याद किया गया, बॉक्सर सुमित सांगवान लाइट हैवीवेट वर्ग के राउंड ऑफ 32 में 14-15 से करीबी मुकाबला हार गए। ई.एस.पी.एन. के कमेंटेटरों ने हार को “दिन के उजाले की डकैती” के रूप में वर्णित किया और वेल्टरवेट प्री-क्वार्टर में विकास कृष्ण की एक जीत प्रतिद्वंद्वी द्वारा अपील के बाद पलट दी गई। भारतीय को चार पेनल्टी अंक दिए गए और तीसरे दौर में भारतीय मुक्केबाज द्वारा किए गए नौ होल्डिंग फाउल और जानबूझकर गमशील्ड को थूकने का हवाला देते हुए प्रतिद्वंद्वी के पक्ष में स्कोर 11-13 से 15-13 में बदल दिया गया।

2016 रियो ओलंपिक: महिला एथलीटों ने बचायी लाज

भारत ने रियो डी जनेरियो को दो पदक के साथ छोड़ दिया। ये पदक इतिहास में पहली बार केवल महिला एथलीटों ने जीते, महिला एकल में बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु को रजत, जो भारत की सबसे कम उम्र की व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता और ओलंपिक रजत जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं, साथ ही महिलाओं के 58 किग्रा में फ्रीस्टाइल पहलवान साक्षी मलिक को कांस्य पदक मिला, जो ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनीं। 

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

इस 2016 ओलंपिक खेलों को 36 साल बाद महिला फील्ड हॉकी टीम की ऐतिहासिक वापसी के कारण भारतीय महिला एथलीटों के प्रदर्शन के लिए याद किया जाएगा और कलात्मक जिमनास्ट और राष्ट्रमंडल खेलों की कांस्य पदक विजेता दीपा करमाकर के प्रदर्शन के लिए, जिन्होंने महिलाओं की तिजोरी में अपने उच्च जोखिम वाले Produnova routine के साथ पुरे विश्व के दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया जब वह 4 वें स्थान पर रही और सिर्फ एक स्थान से ओलंपिक पदक से चूक गई।

2020 टोक्यो ओलंपिक: गोल्डन थ्रो

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण 2021 में आयोजित टोक्यो 2020 ओलंपिक मे भारत ने 2020 खेलों के लिए 126 प्रतियोगियों का अपना सबसे बड़ा दल भेजा। आज तक, 2020 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 1920 में अपनी पहली नियमित ओलंपिक उपस्थिति के बाद से भारत के लिए सबसे सफल खेल हैं

पुरुषों की भाला फेंक में, गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा ने ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स स्पर्धा में भारत का पहला स्वर्ण पदक जीता। यह पदक इस मायने में भी खास था कि यह भारतीय ओलंपिक इतिहास में ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स स्पर्धा में भारत का अब तक का एकमात्र पदक है।

सैखोम मीराबाई चानू ने महिलाओं की भारोत्तोलन (49 किग्रा) में भारत का पहला रजत जीता।

पुरुषों की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता, 1980 के बाद से उनका पहला ओलंपिक पदक।

रवि धैया ने कुश्ती में रजत और बजरंग पुनिया ने कांस्य पदक जीता, जिससे यह भारत का लगातार चौथा ओलंपिक बन गया जिसमें भारत ने कुश्ती में पदक जीते हैं।

बॉक्सर लोविलिना बोरोगोहेन ने महिलाओं की वेल्टरवेट मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीता।

भारत के एथलीटों द्वारा अभूतपूर्व जीत का यह प्रदर्शन। हॉकी, कुश्ती, निशानेबाजी और एथलेटिक्स सहित विभिन्न खेलो में, खेल के विश्व स्तर पर भारत के आगमन को दर्शाता है।

भारतीय ओलंपिक इतिहास की अनसुनी कहानी

कई एथलीटों को 2020 टोक्यो खेलों में पोडियम फिनिश नहीं मिला, लेकिन उनके प्रदर्शन ने खेलों के प्रति उनके जज्बे को दिखाया, जैसे कि पुरुषों की 4 x 400 मीटर रिले टीम ने 3: 00.25 का एक नया एशियाई रिकॉर्ड बनाया। महिला गोल्फ में अदिति अशोक और पुरुषों की फ्रीस्टाइल कुश्ती (86 किग्रा) में दीपक पुनिया दोनों अंतिम रैंकिंग में चौथे स्थान पर रहे।

महिला राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम, जिसने 1980 में ओलंपिक की शुरुआत के बाद से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हासिल किया, परन्तु वे अंतिम 5 मिनट में अपना कांस्य पदक मैच हार गए।

भारतीय ओलंपिक इतिहास का जश्न

ओलंपिक इतिहास के इतिहास के माध्यम से भारत की यात्रा जीत, असफलताओं और धीरज की गाथा है। औपनिवेशिक काल मे भागीदारी के शुरुआती दिनों से लेकर वैश्विक प्रतिस्पर्धा के आधुनिक युग तक, प्रत्येक ओलंपिक खेलों ने अनसुने नायकों, अनकहे बलिदानों और अविस्मरणीय जीत की कहानियों से पटा हुआ है – जो एक राष्ट्र की आकांक्षाओं और सपनों के साथ कदम-ताल करता है।

अंत में, एक और अनकही कहानी

मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं: “फ्लाइंग सिख” मिल्खा सिंह, जो खुद 1960 के रोम ओलंपिक में एक फोटो फिनिश में एक सेकंड के एक अंश से ट्रैक और फील्ड पदक से चूक गए थे, उन्होंने भारतीय खेलों की बेहतरी के लिए अपना पूरा जीवन काम किया और हमेशा ओलंपिक ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में पोडियम पर एक भारतीय को देखने के इस सपने को आगे बढ़ाया और व्यक्त किया।

नीरज चोपड़ा “द गोल्डन बॉय” ने 7 अगस्त, 2021 को 2020 टोक्यो ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स स्पर्धा में भारत का पहला स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरव का क्षण दिया

मिल्खा सिंह ने अपने सपने के सच होने के लिए अपनी आखिरी सांस तक पूरी जिंदगी इंतजार किया, लेकिन 18 जून, 2021 को उनका सपना सुनहरे पंखों के साथ सच होने से कुछ दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन वह इतने भाग्यशाली नहीं थे और उन्हें अपनी आंखों से गौरवशाली क्षण को देखने का मौका नहीं मिला।

लेकिन, हम भाग्यशाली भारतीय जो नीरज चोपड़ा को जीतते हुए देख पाए और हमारे जीवन में अपने देश के लिए गर्व करने का यह क्षण मिला। इसलिए, हमें विश्व मंच पर अपने एथलीटों का जश्न मनाना, समर्थन करना और संजोना चाहिए।

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इस प्रेरणा के कारण, हम इन ब्लॉगों को लिखते हैं और आपसे अनुरोध करते हैं कि आप 2024 के पेरिस ओलंपिक और अन्य में भारतीय खेल प्रतिस्पर्धाओ पर अधिक अपडेट के लिए हमसे जुड़ें और हमारा समर्थन करें।

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